Tuesday, September 13, 2011

खुछ कोंया सा...

सन्नाटे में,
कामोशी में/
कोफ्नाक दर्द भरते हुवे उदासी रात के...सरगोशी में,
सिर्फ तेरे यादों के भरोसे सांस ले रहाहू//

ये अकेलापन शायद मजे कभ्का कतम करदेता,
यादोंमे ही सही....अगर तुम न आते/
हम शायद सांस लेना ही रोक देते,
सिर्फ खयालोमे ही सही...तुम न साथ देते!//

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